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उपभोक्ता सहायता पोर्टल (संस्करण 2.3)
कोई व्यक्ति जिसे अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता के रूप में परिभाषित किया गया है, शिकायत दर्ज कर सकता है। अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित व्यक्ति शिकायत दर्ज कर सकते हैं: कोई उपभोक्ता; अथवा कम्पनी अधिनियम, 1956 अथवा किसी अय विद्यमान कानून अथवा केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार के अंतर्गत पंजीकृत कोई स्वैच्छिक उपभोक्ता संस्थान, एक या अधिक उपभोक्ता जहां अनेक उपभोक्ताओ का समान हित हो रहा हो।
आपको उस स्थान का पता लगाना होगा जिसके अधिकार-क्षेत्र में मामला आता है और उसके बाद दावे के मूल्यों को सुनिश्चित करना होगा। प्रतिपक्ष द्वारा आपको उपलब्ध कराई गई सेवा में कमी अथवा आपको बेचे गए त्रुटिपूर्ण उत्पाद के लिए प्रतिपक्ष से अपेक्षित राशि अथवा प्रतिपूर्ति के आधार पर आपको अपनी शिकायत दर्ज करवानी होगी।
आर्थिक क्षेत्राधिकार
20 लाख से कम कीमत वाली वस्तुओं और सेवाओं के मामले में, आपको राज्य के संबंधित जिले में गठित जिला मंच में अपनी शिकायत दर्ज करानी होगी। 20 लाख रूपये से अधिक किंतु 1 करोड़ रूपये से कम कीमत वाली वस्तुओं और सेवाओं के मामले में, आपको भिन्न भिन्न राज्यों के राजधानी नगरों में स्थित राज्य आयोग में अपनी शिकायत दर्ज करानी होगी। 
1 करोड़ रूपये से अधिक कीमत वाली वस्तुओं और सेवाओं के मामले में, आप नई दिल्ली में स्थित एकमात्र राष्ट्रीय आयोग में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। 
प्रादेशिक क्षेत्राधिकार 
शिकायत के क्षंत्राधिकार का निर्धारण मामले के तथ्‍यों और कार्रवाई के स्‍थान के आधार पर किया जाता है। इसके अतिरिक्‍त, जब आप कोई शिकायत दायर करते हैं तो आपको प्रतिपक्ष के निवासस्‍थान अथवा जिस स्‍थान से वह अपना कार्य अथवा कारोबार संचालित करता हो, को भी ध्‍यान में रखना होगा। इसका अभिप्राययह है कि किसी सेवा प्रदाता के विरूद्ध 20 लाख से कम की राशि हेतु शिकायत दर्ज करवा रहे हैं तो आपको उस स्‍थान के क्षेत्राधिकार वाले जिला मंच में जाना होगा जहां कार्रवाई हुई थी। यदि मामला 20 लाख रूपये से अधिक किन्‍तु 1 करोड रूपये से कम का है तो आपको उस राज्‍य के राज्‍य आयोग के पास जाना होगा जहां वह व्‍यापारी/सेवा प्रदाता/विनिर्माता अवस्थित है। अपनी शिकायत दर्ज करवाते समय इन दो बातों का ध्‍यान रखना होगा। किसी ई-कामर्स खरीद के मामले में कार्रवाई का स्‍थान वह हो सकता है, जहां से आर्डर दिया गया हो।
जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता मंच होते हैं। जिला मंच की अध्यक्षता जिला न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे अथवा कर चुके अथवा कर सकने योग्य व्यक्ति द्वारा की जाती है और राज्य आयोग की अध्यक्षता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे अथवा कर चुके व्यक्ति द्वारा की जाती है। राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष भारत के उच्चतम न्यायालय में कार्य कर रहे अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है।
उपभोक्ता विवादों के संबंध में सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार अन्य न्यायालयों के लिए वर्जित नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत की संसद यह महसूस करती है कि देशभर में विभिन्न उपभोक्ता शिकायतों के समाधान एवं निपटान के लिए एक प्रभावी एवं सुविधाजनक तंत्र का होना आवश्यक था। इसके परिणामस्वरूप, उपभोक्ता शिकायतों के किफायती एवं त्वरित समाधान के लिए एक त्रि-स्तरीय समाधान तंत्र का सृजन किया गया। ये मंच केवल उपभोक्ता/शिकायतों/मुद्दों के संबंध में कार्य करते हैं, ताकि उनका पूरा समय उपभोक्ता शिकायतों के समाधान के लिए समर्पित हो सके।
आपकी शिकायत स्पष्ट, पुख्ता एवं संक्षिप्त होनी चाहिए। आपके द्वारा पेश किए गए सभी तथ्य एवं दस्तावेज क्रम में होने चाहिए। आपके निम्नलिखित को शामिल करना होगा:-
(क) कारण-शीर्षक 
(ख) यदि सम्भव हो, शिकायत को एक शीर्षक होना चाहिए 
(ग) शिकायतकर्ता का नाम, विवरण एवं पता (आपका नाम)
(घ) प्रतिपक्ष अथवा प्रतिपक्षों, जैसा भी मामला हो, का नाम, विवरण एवं पता, जिससे उनका निर्धारण किया जा सके
(ङ) शिकायत से संबंधित तथ्य और कब तथा कहां यह हुई
(च) प्रतिपक्ष इस संबंध में कार्रवाई किए जाने के लिए कैसे उत्तरदायी है तथा वे इस याचिका के प्रति जबावदेह एवं जिम्मेदार क्यों है (छ) याचिका में समाविष्ट आरोपों के समर्थन में दस्तावेजों की प्रति। शिकायतकर्ता को शिकायत/याचिका की प्रति तथा उसके द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी दस्तावेजों को उसके रिकॉर्ड के लिए रखने की सलाह दी जाती है। आपके द्वारा विधिवत रूप से हस्ताक्षरित शिकायत सहित दस्तावेजों की सूची भी प्रस्तुत करनी चाहिए।
(ज) आपको यह भी स्पष्ट करना होगा कि मामला उस अधिकरण के क्षेत्राधिकार में कैसे आता है – क्या प्रतिपक्ष, मंच के क्षेत्राधिकार में निवास करता है अथवा लाभ अर्जित करने के लिए व्यापार चलाता है अथवा उसका शाखा कार्यालय है अथवा व्यक्तिगत रूप से कार्य करता है या क्या कार्रवाई के कारण (क्षतिग्रस्त वस्तु अथवा दोषपूर्ण सेवा) मंच के क्षेत्राधिकार में आते हैं। 
(झ) आप प्रतिपक्ष से अपनी शिकायत से संबंधित कीमतों के दावे पाने के भी हकदार हैं। अतः अपनी शिकायत में उस राशि का उल्लेख भी क
अधिनियम की धारा 2(!)(g) के अनुसार, कमी का अर्थ, किसी कानून, संविदा अथवा अन्यथा के अंतर्गत बनाए रखने के लिए अपेक्षित किसी सेवा के प्रतिपादन में गुणवत्ता, प्रकृति और तरीके के निष्पादन में कोई दोष, त्रुटि, कमी अथवा अपर्याप्तता हैं।
अधिनियम की धारा 2(1)(nnn) के अनुसार, प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यौहार से वह व्‍यापार प्रक्रिया अभिप्रेत है जिससे वस्‍तुओं अथवा सेवाओं की कीमत अथवा उनकी सुपुदर्गी की शर्तों या आपूर्ति के प्रवाह को इस प्रकार प्रभावित करे जिससे उपभोक्‍ता को अतर्कसंगत कीमत देनी पडे अथवा उस पर प्रतिबध लगें। इसमें किसी व्‍यापारी द्वारा ऐसी वस्‍तु, जिसकी कीमत बढ़ गई हो अथवा बढ़ने की सम्‍भावना हो, की आपूर्ति अथवा सेवा प्रदान करने में की गई देरी; जिसे कोई ऐसी व्‍यापार प्रथा जिसमें उपभोक्‍ता द्वाराअन्‍य वस्‍तुएं अथवा सेवाएं को खरीदते, किराए पर लेते समय किसी अन्‍य किसी वस्‍तु या सेवा, या जैसा भी मामला हो, की खरीद करनी अपेक्षित हो भी शामिल है।
क) 1986 के मूल असंशोधित अधिनियम के तहत, किसी भी प्रकार के न्यायालय-शुल्क अथवा न्यायालय की किसी अन्य औपचारिक कार्रवाई के लिए भुगतान की आवश्यकता न होने की परिकल्पना की गई थी। तथापि, 2002 के संशोधन के पश्चात्, आपको कोई शिकायत दर्ज करवाने के लिए एक मामूली शुल्क का भुगतान करना होता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में स्थित जिला मंचों के लिए शुल्क अवसंरचना नीचे दी गई है:–
1 लाख रूपये तक – 100 रूपये 
1 लाख रूपये से अधिक परंतु 5 लाख से कम – 200 रूपये 
5 लाख रूपये से अधिक परंतु 10 लाख से कम –400 रूपये 
10 लाख रूपये से अधिक परंतु 20 लाख से कम –500 रूपये
विनिर्दिष्ट शुल्क का भुगतान आपको किसी राष्ट्रीयकृत बैंक पर आहरित क्रॉस्ट डिमांड ड्राफ्ट अथवा राज्य आयोग के रजिस्ट्रार तथा जहां पर यह स्थित है उस स्थान पर भुगतानदेय क्रॉस्ड भारतीय पोस्टल आर्डर के माध्यम से करना होगा। संबंधित जिला मंच, जिस रीति से भी राशि प्राप्त होगी जमा कर सकेंगे।
जी, हां। कार्रवाई के कारणों की तारीख से दो वर्ष की अवधि तक आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। इसका अर्थ होगा कि सेवा में कमी अथवा वस्तु में दोष पाये जाने के दो वर्ष की अवधि के भीतर।
जी, हां। परंतु कुछेक मामले में, समय-सीमा समाप्त हो जाती है किंतु आप देरी से संबंधित तर्कसंगतता के संबंध में मंच अथवा आयोग को संतुष्ट करने में सक्षम हैं, तो आपकी शिकायत अभी भी प्राप्त की जा सकती है। तथापि, प्रत्येक दिन के लिए देरी का स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए।
जी, नहीं। उपभोक्ता न्यायालय केवल आम उपभोक्ता जिन्होंने वस्तुओं अथवा सेवाओं की खऱीद अपने निजी उपयोग अथवा आवश्यकता के लिए की है, के लिए बनाए गए हैं। वे व्यक्ति जो वस्तुओं/सेवाओं को वाणिज्यिक उद्देश्य अथवा पुनर्विक्रय के उद्देश्य से खरीदते हैं अधिनियम के तहत वर्जित हैं। यह मंच व्यवसायों, फर्मों तथा उद्योगों के लिए बल्कि त्वरित एवं प्रभावी न्याय के लिए आशयित आम आदमी/उपभोक्ता के लिए बनाया गया है।
जिला मंचों के आदेशों के विरूद्ध कोई अपील संबंधित राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में की जा सकती है।
जिला मंच के आदेशों के विरूद्ध अपील उस आदेश की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर राज्य आयोग के समक्ष की जा सकती है।.
तथापि, राज्य आयोग उक्त अवधि के समाप्त होने के पश्चात् भी अपील को स्वीकार कर सकता है यदि यह संतोषजनक हो कि उस अवधि के भीतर अपील दर्ज न करने के कारण पर्याप्त थे। इसके अतिरिक्त, आवेदक को डिक्री राशि के 50 प्रतिशत अथवा 25 हजार रूपये, जो भी कम हो, जमा करने होते हैं।
जी, हां। यदि कोई व्यक्ति मंच के आदेशों के अनुपालन में विफल हो जाता है अथवा चूक जाता है तो उसे तीन वर्ष की अवधि के लिए कारावास अथवा 2,000/- रूपये जुर्माना जिसे 10,000/- तक बढ़ाया जा सकता है अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है।